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शायद ज़िंदगी बदल रही है|

जब मैं छोटा था , शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी .. मुझे याद है मेरे घर से " स्कूल " तक का वो रास्ता , क्या क्या नहीं था वहां , चाट के ठेले , जलेबी की दुकान , बर्फ के गोले , सब कुछ , अब वहां " मोबाइल शॉप ", " विडियो पार्लर " हैं , फिर भी सब सूना है .. शायद अब दुनिया सिमट रही है ... . . . जब मैं छोटा था , शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं... मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े , घंटों उड़ा करता था , वो लम्बी " साइकिल रेस ", वो बचपन के खेल , वो हर शाम थक के चूर हो जाना , अब शाम नहीं होती ……….SIRF   दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है ……… शायद वक्त सिमट रहा है ……….????? . . जब मैं छोटा था , तब खेल भी अजीब हुआ करते थे , छुपन छुपाई , लंगडी टांग , पोषम पा , कट केक , टिप्पी टीपी टाप . अब internet, e-mail , से फुर्सत ही नहीं मिलती .. शायद ज़िन्दगी बदल रही है …… ?? … ………. जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है .. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है ... " मंजिल तो यही थी , बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी

रवीश की रिपोर्ट- 'वर्ल्ड क्लास' दिल्ली की सड़कें

http://www.ndtv.com/video/player/ravish-ki-report/video-story/190082