बदलते दौर
एक वो दौर था - "गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी, बूढ़े भारत में फिर से आई नई जवानी थी, चमक उठी सन सत्तावन में वो तलवार पुरानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी|" एक ये दौर है - "जनता के पैसे की कीमत सब नेताओ ने पहचानी है, जम कर घोटाले करने की सबने मन में ठानी है, बूढ़े नेताओ में जागा ये कैसा लालच है, और देखो, चमक उठी सन बारह में यह महंगाई तूफानी है, जिससे लड़ रही जाबांज, यह भारत की जनता वही पुरानी है|"