लगा इंसान हूँ
सुबह आँख खुली, लगा इंसान हूँ, हाथ जोड़े, ध्यान आया कौन हूँ, दिन चलता रहा, शाम ढलती रही, कभी परिवार का हुआ, कभी समाज का, कभी देश का हुआ, कभी मज़हब का, रात हुई, सोने चला, फिर लगा इंसान हूँ, सुबह मेरा जन्म था, रात मेरी मौत, बस तभी मैं इंसान था, बस तभी मैं इंसान था|