A nice poem on Holi: festival of colors
घुल रही फिजा में
रंगो की महक
पागल मन क्यूँ
बार बार जाता है बहक
तोड़कर हर बंधन को
दूर कहीं छोड़कर व्यथित वेदना को
भूलकर हर इक पीड़ा
मन रंग की आगोश में गिरा
रंग है प्यार का , सौहार्द का
आनंद का, उल्लास का
अनेकता में भी एकता
संपूर्ण भारत के इस विश्वास का
इस रंग में न जाने क्या जादू है
कि मन मेरा बेकाबू है
कितने ही टूटे रिश्तों की डोर बाँधती
रंग में इतनी है असीम शक्ति
मन मेरे डूबकर
आज इस रंग में
कर ले यह निश्चय
कि हम अपनी रंगभूमि को
प्यार और भाईचारे से
और रंगीन बनाएँगे
और हर होली में हर बार
हम यही संकल्प दुहराएँगे
By Shiv Nath Kumar, CDAC, Mumbai
रंगो की महक
पागल मन क्यूँ
बार बार जाता है बहक
तोड़कर हर बंधन को
दूर कहीं छोड़कर व्यथित वेदना को
भूलकर हर इक पीड़ा
मन रंग की आगोश में गिरा
रंग है प्यार का , सौहार्द का
आनंद का, उल्लास का
अनेकता में भी एकता
संपूर्ण भारत के इस विश्वास का
इस रंग में न जाने क्या जादू है
कि मन मेरा बेकाबू है
कितने ही टूटे रिश्तों की डोर बाँधती
रंग में इतनी है असीम शक्ति
मन मेरे डूबकर
आज इस रंग में
कर ले यह निश्चय
कि हम अपनी रंगभूमि को
प्यार और भाईचारे से
और रंगीन बनाएँगे
और हर होली में हर बार
हम यही संकल्प दुहराएँगे
By Shiv Nath Kumar, CDAC, Mumbai
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